Thursday, September 2, 2021

कनिष्ठ उपाध्याय

कनिष्ठ उपाध्याय- विद्यालय का वो पहला दिन 

 हमारे देश में जब बालक बहुत ज्यादा उद्दंडता करता हुआ देखा जाता है तो उसे एक ही बात कही जाती है  पढ़ ले बेटा नहीं तो होस्टल भेज देंगे   और होता भी ऐसा  ही है  जब घर वालो  की सारी उम्मीद  खत्म   जाती है  तो वे सोचते चलो इसे शास्त्री बनाया  जाए  , शास्त्री बनकर कुछ तो कर ही लेगा | ठीक ऐसी ही उम्मीद उस  15 साल के एक बालक के माता - पिता को भी थी  उन्होंने बड़ी हिम्मत  करके अपने दूसरे बेटे को भी शास्त्री करने भेजा | वो पहला या दूसरा ही दिन था ही  कि अपने वरिष्ठ  भाइयो को वार्डन साहब ( निलय भैया ) से पिटते देखा | हम सब के मन डर बैठा , हम ध्यान रखते कि कोई गलती न हो जाए वरना  बहुत कुटाई होगी ,साथ - साथ वरिष्ठ भाई  नियमावली भी सिखाते जा रहे थे , पंडित जी से  ऐसे  बात करनी है , सब भैया को जी लगाकर संबोधित करना है , कोई भी काम हो तो पहले पूछ  लो फिर करो वगैरह -वगैरह  धीरे धीरे समझ आने लगा कि  कैसे रहना है , विद्यालय प्रारंभ होने में अभी भी कुछ दिन बाकी थे परन्तु संजय  सर् का वर्णन सुन कर ही रूह कांपने लग गई थी | संयोगवश हमें जिस दिन हमें विद्यालय ले जाया गया उस दिन गुरुवार था और गुरूवार का मतलब उस दिन समझ आया कि इसे गुरूवार क्यों कहते है , जो मारा है न संजय सर ने हमारे सीनियर्स को यह नजारा  देखकर  मजा आ रहा था कि  जो हम पर आदेश चलाते आज वे स्वयं कुट  रहे हैं पर साथ ही यह भी  लगा कि  भैया बोरी बिस्तर बाँध लो  यह  तो एक दिन अपने साथ भी होना ही है | डरे हुए सहमे से जब विद्यालय से आए तो  फिर भैया ने समझाया समय पर काम करोगे तो सर कभी नहीं मारेंगे , पर यह  नहीं बताया कि  यह  प्रसाद तो उन्हें भी कई बार मिल चुका है | 
संजय  सर् वो दिन कितना ही भयावह क्यों न रहा हो पर आज हम ध्रुवार्थी जहाँ कहीं  भी हैं  उसमे आपका बहुत योगदान है |

Saturday, September 16, 2017

पुरानी यादें

                                       

                                                       पुरानी यादें 

आज पता नहीं क्यों ध्रुवधाम बहुत याद आ रहा है ,यार ये सब कुछ सोचने के लिए भी साला संडे ही मिलता है नौकरी से फुरसत घर में बैठे आराम फरमा  रहा हूँ  आज करने को कुछ नहीं सो सोचा कुछ आप लोगो से साझा करूँ-
रविवार की सुबह हम सभी ध्रुवार्थियों   का विशेष दिन हुआ करता था | सभी भाई साहब \पंडित जी  से प्रार्थना करते  की आज सुबह ५ बजे वाली क्लास न हो तो बेहतर हो | रविवार को पंडित जी का भी अवकाश होता था सो ये तो लगभग असंभव  होता | मान लो उन्होंने कक्षा रद्द भी कर दी तो १ घंटे  का योग सत्र चला करता | एक बार छात्रों के सोने के मंसूबो पर पानी फिर जाता लेकिन  मेरे जैसे विद्यार्थी को १० मिनट भी मिल जाए तो पर्याप्त है | रविवार को पूजन का मजा कुछ अलग ही हुआ करता था, पांचो कक्षा  के विद्यार्थी  एक साथ पूजन करते और अभिषेक करने के लिए तो मनो होड़ मच जाती | कोई  नहाता हुआ भी यही कहता २ मिनट रोकना भाई मैं  बस पहुँच ही रहा  हूँ | अदभुत  नज़ारा हुआ करता था | रविवारीय विशेष विद्वान् का CD  प्रवचन और फिर पंडित जी का प्रवचन | रविवारीय प्रवचन  का प्रारंभ  पंडित जी  सभी विद्यार्थी  को  विशेष ज्ञान के साथ करते जिसमे प्रमुख मुद्दा हुआ करता ऑब्जरवेशन | कुछ नजर आ रहा है आपको ,ये सब मुझे ही क्यों दिखता,ये वाक्य आज भी उस ही तरह कानों में गूंजते हैं |प्रवचन के पश्चात अखबार के लिए  मारामारी होती कुछ लोग तो अंग्रेजी अख़बार के लिए भी आपस में  उलझ जाते |
जिस रविवार भोजन में दाल बाटी बनी हो उस दिन तो दोपहर की क्लास का तो कोई चांस  ही नहीं | भोजन के पश्चात कई तो नींद के आगोश में खो जाते और कई खरीददारी के लिए बाँसवाड़ा चले जाते|  कई  घूमने के बहाने पिक्चर देख आते | चोरी छिपे फ़िल्म देखने में  पता नहीं क्या मजा था जो अब नहीं मिलता |
शाम  को सांस्कृतिक कार्यक्रम  में अधिकतर तो गोष्ठी ही हुआ करती थी पर वो भी क्या क्षण था कनिष्ठ हो तो पूरे सप्ताह भर वरिष्ठ भैया से पूछ-पूछ कर उन्हें हैरान करना और वरिष्ठ हुए तो अन्य को उचित परामर्श देना | यदि आप दलनायक या उपदलनायक हैं तो पूछो मत  भैया| जब तक गोष्ठी सम्पन्न न हो जाए चिंता में डूबे रहना निर्णायक चाहे कुछ कहे पर इंतजार तो पंडित जी क वक्तव्य का रहता | जिसे श्वेत या पीत  पत्र मिलता उसकी खुशी  तो मानो देखते ही  बनती | कृष्ण या नील मिलता उसकी तो खैर  नहीं | अंत में महावीर भगवान  की जय के साथ सभा विसर्जित हो जाती और रविवार का यह दिन भी समाप्त हो जाता |
                                                       ' महावीर भगवान की जय' 

DHRUVDHAM


प्रस्तुति
समर्पण
समर्पण व्यक्ति नहीं भावना है


                                                                                                                                                                      काश!


हम जो कहते हैं, वह कर पाते

बिन मांगे, कर क्षमा दान

निर्भार सदा हम हो जाते

सरल-सरस मन से करके क्षमा याचना

निर्मान-निर्वैर यदि हम हो जाते

तो निश्चित ही

समाज में सौहार्द
और
हृदय में समकित के बीज बो जाते

काश!
हम जो कहते हैं,
वह कर पाते।

८/०९/17   10.42

Tuesday, October 11, 2011

dhruvdham: Dhruvdham me sanskrtik saptah sampanna

dhruvdham: Dhruvdham me sanskrtik saptah sampanna: शास्त्री अंतिम वर्ष के विधार्थियों के निद्रेशन में सम्पन्न हुई प्रतियोगिता आचार्य अकलंक देव जैन न्याय महाविद्यालय" ध्रुवधाम"में त्रिदिवसी...

Dhruvdham me sanskrtik saptah sampanna

 शास्त्री अंतिम वर्ष के विधार्थियों के निद्रेशन में सम्पन्न हुई प्रतियोगिता 

आचार्य अकलंक देव जैन न्याय महाविद्यालय" ध्रुवधाम"में त्रिदिवसीय सांस्क्रतिक प्रतियोगिता आयोजित की गयी जिसमे सभी विद्यार्थियों ने बढ-चढ़ कर हिस्सा लिया सर्व प्रथम ४ तारीख को बजन प्रतियोगिता आयोजित की गयी जिसमे उमास्वामी दल ने प्रथम तथा समन्त्बद्र दल ने द्वीतीय स्थान प्राप्त किया |वाद-विवाद अंकित जैन प्रथम तथा अपूर्व  द्वीतीय रहे अंत्याक्षारी में उमास्वामी दल प्रथम और  द्वीतीय अमृत्चंद के प्रतिभागी रहे 

इन्ही दिनों दिन में आयुजित खेलो में क्रिकेट  में चिन्मय शास्त्री की अगुवाई में " ध्रुवधाम"रोयल्स ने बजी मारी
तथा बोलिबोल में " ध्रुवधाम"ने निजधाम को मात दी |बेटमिनतन  चेस कैरम, में दीपक जैन सेमरी विजेता रहे 


                                                                                                              संयोजक  
                                                                                                             चिन्मय शास्त्री 
                                                                                                            शास्त्री अंतिम वर्ष 




Wednesday, May 4, 2011



 यह एक ऐसी संस्था है जहा धार्मिक गतिविदियो का सञ्चालन  निरंतर हो रहा है और  ये सब जिनके निर्देशन में होता है वो मुमुकुशु समाज के प्रतिष्टित विद्वान पं . राजकुमार  जी जैनदर्शनाचार्य करते है  अभी तक यहाँ से ३ सत्र  के विधार्थी  स्नातक हो चुके है और 8 सत्र प्रगति पर है  यहाँ की सारी गतिविधि पं . टोडरमल स्मारक  ट्रस्ट की तरह ही चलती है  यहाँ से प्रतिवर्ष  १० विधार्थियों   को  "न्याय  शास्त्री " की उपाधि   से अलंकृत  किया जाता है  और  समय  समय पर अनेक विद्वानों का समागम प्राप्त होता रहता है 

                                                                                       चिन्मय जैन "शास्त्री"
                                                                                                  कोटा