पुरानी यादें
आज पता नहीं क्यों ध्रुवधाम बहुत याद आ रहा है ,यार ये सब कुछ सोचने के लिए भी साला संडे ही मिलता है नौकरी से फुरसत घर में बैठे आराम फरमा रहा हूँ आज करने को कुछ नहीं सो सोचा कुछ आप लोगो से साझा करूँ-रविवार की सुबह हम सभी ध्रुवार्थियों का विशेष दिन हुआ करता था | सभी भाई साहब \पंडित जी से प्रार्थना करते की आज सुबह ५ बजे वाली क्लास न हो तो बेहतर हो | रविवार को पंडित जी का भी अवकाश होता था सो ये तो लगभग असंभव होता | मान लो उन्होंने कक्षा रद्द भी कर दी तो १ घंटे का योग सत्र चला करता | एक बार छात्रों के सोने के मंसूबो पर पानी फिर जाता लेकिन मेरे जैसे विद्यार्थी को १० मिनट भी मिल जाए तो पर्याप्त है | रविवार को पूजन का मजा कुछ अलग ही हुआ करता था, पांचो कक्षा के विद्यार्थी एक साथ पूजन करते और अभिषेक करने के लिए तो मनो होड़ मच जाती | कोई नहाता हुआ भी यही कहता २ मिनट रोकना भाई मैं बस पहुँच ही रहा हूँ | अदभुत नज़ारा हुआ करता था | रविवारीय विशेष विद्वान् का CD प्रवचन और फिर पंडित जी का प्रवचन | रविवारीय प्रवचन का प्रारंभ पंडित जी सभी विद्यार्थी को विशेष ज्ञान के साथ करते जिसमे प्रमुख मुद्दा हुआ करता ऑब्जरवेशन | कुछ नजर आ रहा है आपको ,ये सब मुझे ही क्यों दिखता,ये वाक्य आज भी उस ही तरह कानों में गूंजते हैं |प्रवचन के पश्चात अखबार के लिए मारामारी होती कुछ लोग तो अंग्रेजी अख़बार के लिए भी आपस में उलझ जाते |
जिस रविवार भोजन में दाल बाटी बनी हो उस दिन तो दोपहर की क्लास का तो कोई चांस ही नहीं | भोजन के पश्चात कई तो नींद के आगोश में खो जाते और कई खरीददारी के लिए बाँसवाड़ा चले जाते| कई घूमने के बहाने पिक्चर देख आते | चोरी छिपे फ़िल्म देखने में पता नहीं क्या मजा था जो अब नहीं मिलता |
शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम में अधिकतर तो गोष्ठी ही हुआ करती थी पर वो भी क्या क्षण था कनिष्ठ हो तो पूरे सप्ताह भर वरिष्ठ भैया से पूछ-पूछ कर उन्हें हैरान करना और वरिष्ठ हुए तो अन्य को उचित परामर्श देना | यदि आप दलनायक या उपदलनायक हैं तो पूछो मत भैया| जब तक गोष्ठी सम्पन्न न हो जाए चिंता में डूबे रहना निर्णायक चाहे कुछ कहे पर इंतजार तो पंडित जी क वक्तव्य का रहता | जिसे श्वेत या पीत पत्र मिलता उसकी खुशी तो मानो देखते ही बनती | कृष्ण या नील मिलता उसकी तो खैर नहीं | अंत में महावीर भगवान की जय के साथ सभा विसर्जित हो जाती और रविवार का यह दिन भी समाप्त हो जाता |
' महावीर भगवान की जय'
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ReplyDeleteधन्यवाद धवल महोदय
Deleteधन्यवाद धवल महोदय
Deleteअत्यंत भावुक करने वाली यादें भाई।।
ReplyDeletesahi kaha anekant ji
Deleteसही में यादे ताजा करवा दी चिन्मय तुमने ...👍
ReplyDeleteभाई साहब बस अब यादें ही रह गई वहाँ की
Deleteबहुत सुन्दर लिखा है भाई यादों को पढ़कर काफी कुछ सामने आता दिखाई दिया .. जैसे मैं भी इसी में अभी चल रहा हूं, आपने भाषा व शब्द कौशल का यह सुंदरतम समा बाँधा। काबिले तारीफ ��
ReplyDeleteधन्यवाद तन्मय भाई ये हम सब की आप बीती है।
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Deleteबहुत सुन्दर चिन्मय भाई ! तुमने आज भावुक करा दिया |
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