प्रस्तुति
समर्पण
समर्पण व्यक्ति नहीं भावना है
काश!
हम जो कहते हैं, वह कर पाते
बिन मांगे, कर क्षमा दान
निर्भार सदा हम हो जाते
सरल-सरस मन से करके क्षमा याचना
निर्मान-निर्वैर यदि हम हो जाते
तो निश्चित ही
समाज में सौहार्द
और
हृदय में समकित के बीज बो जाते
काश!
हम जो कहते हैं,
वह कर पाते।
८/०९/17 10.42
No comments:
Post a Comment